पुजारी जी
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मां-बाप व गुरू के पास बुद्धि से नहीं हृदय से उपस्थित होना चाहिये। जहाँ दूसरों को समझाना कठिन हो वहाँ खुद को समझ लेना चाहिये। आप के पास क्या है यह महत्वपूर्ण नहीं आप के साथ क्या है यह महत्वपूर्ण है।
संत वचन मंगळ मयी, राम नाम अनमोल। हिरदा म प्रभुजी बठ्या, भीतर का पट खोल।। प्रेम करां हम जगत सी, मन मं राखां राम। कराँ करम सब धरम सी, व्ही गया चारइ धाम।। रोज-रोज का काम मं, जुड़ कदि सिरी राम। मन मं सुमरण राम को, होय सफल सब काम।। तिरत-वरत सब करि लिया, व्ही गया चारई धाम। पण हिरदा में नइ बस्या, प्रभु जी सीताराम।। थारो - म्हारो छोड़ी न, सब मं देखां राम। निर्मळ मन हुइ जायग, संकट मिट तमाम।। जीव मात्र का साथ मं, दीन दुखी असहाय। निर्मळ मन सेवा करां, ई बी भक्ति कवाय।। कुची राम का नांव की, हिरदा ताळो खोल। आनंद धन मिलि जायग, बिन खर्चा बिन मोल।। हंवु-हंतु मनवा मत कर, हवु मं नी हंई सार। हम सी अहं ख मारि ल, राम भजी ल यार।। घर में गाय बंधेल, म्हइ, मांगण भायर जाय। अंई-वई क्यों भटके मना, भित्तर राम समाय।। प्रीत बढ़ग राम मं, दुख भागग दूर। कराँ कमाई नीति सी, सुख संपति भरपूर।। परभाती मं राम जपा, सांझ पड़े घनश्याम। ओम-ओम का जाप मं, कराँ सदा विसराम।। जीव मात्र मं राम छे, निरजिव मं बी राम। हिरदा सी सब ख करां, हम सादर परणाम।।
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