जय बोंदरू बाबा
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संत शब्द संतुलन शब्द से बना है । हम सभी लोग संतुलन की बजाय अति पर जीते हैं जैसे एक व्यक्ति कहता है कि मुझे अध्यात्म, धार्मिकता ,ध्यान इत्यादि से कोई मतलब नहीं है।मुझे पैसा कमाना है, प्रतिष्ठा कमानी है और अपना परिवार चलाना है ।यह व्यक्ति एक अति पर जा रहा है । दूसरा व्यक्ति घर परिवार सब छोड़कर जंगल की तरफ चला जाता है जिसको हम साधु,महात्मा कहते हैं । यह भी एक अति पर जी रहा है ।यह कहता है मुझे संसार से कोई मतलब नहीं, मुझे मोक्ष खोजना है । एक व्यक्ति धन के लिए पागल है,बहुत ज्यादा कंजूस है वह अन्याय पूर्वक संग्रह करता है ।एक दूसरा व्यक्ति है वह शराब,कबाब इत्यादि पर फिजूलखर्ची करता है ,यह दोनों ही लोग अतियों के शिकार हैं।संत का अर्थ है वह व्यक्ति जो संसार और अध्यात्म के बीच संतुलन बना लेता है। इसको ओशो जोरवा दी बुद्धा कहते हैं अर्थात जिसने धन और ध्यान दोनों के बीच संतुलन बना लिया और दोनों को साध लिया,जिसने गृहस्थ और संन्यास दोनों के बीच संतुलन बना लिया जिसने संसार और समाधि,समाज और स्वयं, परिवार और साधना दोनों के बीच एक संतुलन स्थापित कर लिया। ऐसा व्यक्ति संत है।
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ati uttam
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