संतों को भोजन
एक बार माताजी राधाबाई सुबह से ही मजदूरी करने चली गई। मजदूरी पर सुबह से जाने वाले मजदूर दिन के बारह या एक बजे तक काम करके वापस घर आ जाते है। मा सोचा होगा कि जब मैं काम पर से वापस घर आऊँगी, तब तक बोंदरु भुखा हो जावेगा, इसलिए वह रोटी बनाकर ही गई थी। बालक बोंदर घर में ही थे कि दरवाजे के सामने गली में से एक साधने आवाज लगाई-“अलख निरंजन, बच्चा साधु को कुछ मिल जाये।'' बालक बोंदरु दरवाजे में आये और देखा कि एक साधु महात्मा दरवाजे के सामने खड़े है । बोंदरु ने पुछा महात्मा आपको क्या दूँ ? अनाज या आटा । साधु कहने लगे-बच्चा हमारे पास अनाज या आटा रखने के लिए कोई झोला नहीं है और हम अनाज या आटा माँगते भी नहीं है। हमें तो जोरो की भख लगी हमें भोजन करना है। बालक बोंदरु को मालुम था कि माताजी रोटी बनाकर गई है। अत: कहने लगे-आईये महात्माजी भोजन ही कीजिए ।
बालक बोंदरु ने पहिले महात्माजी के हाथ-पाँव घुलवाये। एक छोटा सा आसन बिछाया। लोटा भरकर जल उनके पास रख दिया एवं थाली परोसकर लाये व महात्माजी के सामने रख दी। महात्मा जी ने भोजन की थाली के चारों ओर जल . घुमाया, आचमन किया एवं थाली के हाथ जोड़े तथा बोंदरु से बोले-बेटा, तुम भी हमारे साथ भोजन करने बैठो। बालक बोंदरु ने कहा-महात्माजी मेरी माताजी मजदूरी करने गई है, वह जब वापस आ जावेगी, तब ही मैं उनके साथ ही भोजन करूँगा। महात्माजी ने कहा-जैसी तुम्हारी र इच्छा, हम भोजन पाते है। महात्माजी भोजन करते रहे और बालक बोंदरु परोसते रहे ।
जब महात्माजी ने भोजन पा लिया तो पहिले आचमन किया, हाथ धोये और फिर से थाली के हाथ जोड़कर हरिओम, हरिओम करते हुए खड़े हो गये एवं बालक बोंदरु से बोले-बेटा आज तेरे घर का भोजन पाकर हम तृप्त हो गये । हम तेरा मातृ-प्रेम एवं साधु प्रेम देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। हम तुम्हें आशीर्वाद देते है- तुम्हें दूनिया में किसी वस्तु की कमी नहीं होगी। जब तुम जहाँ जिस चीज की इच्छा करोगे, वह वस्तु उसी समय तुम्हें मिल जावेगी। बालक बोंदरु ने हाथ जोड़े और कहा-महात्माजी हमारा तो एक छोटा सा अत्यन्त गरीब परिवार है, माताजी को नित्य ही मजदूरा करने जाना पड़ता है, तब ही हमारा गुजर-बसर होता है। मैं छोटा हूँ, इसलिए माताजी मुझ मजदूरी करने साथ में नहीं ले जाती। महात्माजी बोले-बेटा, तुम्हारा इतनागरीब परिवार होते हुए भी आज हमें भोजन कराकर, हमारा दिल जीत लिया। कभी आवश्यकता पड़े तो हमारी इसबार का ध्यान रखना, भगवान का सुमरण सच्चे मन से करना, तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
साधु की इस बात का ध्यान रखना। बालक बोंदरु ने महात्मा जी के चरण छुए। महात्माजी ने - आशीर्वादस्वरुप अपना वरदहस्त बालक के सिर पर रख दिया और चले गये।
कुछ देर बाद माताजी राधाबाई मजदूरी करके वापस घर आ गई। बालक बोंदरु बैठे हुए थे। माताजी के आते ही वे बोले-माताजी अभी एक साधु महात्माजी हमारे घर आये थे, वे भोजन माँगने लगे तो मैंने उनको भोजन करा दिया। अब आप फिर से भोजन बनाइये, तब हम भोजन करेंगे। माँ ने कहा-बेटा क्या तूने भोजन कर लिया ? तो बालक बोंदरु बोले-माताजी आपने भोजन नहीं किया और मैं कैसे भोजन करता ? इसलिए मैंने भोजन नहीं किया, मुझे तो महात्मा जी ने साथ में ही भोजन करने का बोला था। परन्तु मैंने इन्कार कर दिया। माँ ने कहाक्या, अब कुछ रोटी बची है ? तब बोंदरु बोले-हाँ, एक रोटी बची है। माँ, तुम काम करके थकी हारी आई हो इसलिए तुम ही वह रोटी खा लो। इसके बाद भोजन बनाना, तब हम दोनों एक साथ बैठकर भोजन करेंगे। माँ ने कहा-अरे बोंदरु जब एक रोटी बची है, तो क्यों न हम दोनों आधी-आधी करके खा लेते है। बाद में फिर बनाऊँगी, तब खा लेंगे। बालक बोंदरुने हामी भरी । दोनों माँ बेटे अपनी-अपनी थाली में आधी-आधी रोटी लेकर भोजन करने बैठे। (रोटी ज्वार . की थी) भोजन करते-करते दोनों के पेट भर गये और थोड़ा-थोड़ा रोटी का टुकड़ा दोनों की थालियों में बचा रह गया। माँ ने चकित होकर बोंदरु से कहा-बोंदरु! मेरा तो पेट ही भर गया, इतना सा टुकड़ा भी खाया नहीं जा रहा । बोंदरु ने कहा-माँ मेरा भी वही हाल है, देख ना, मेरे पास भी एक छोटा सा टुकड़ा बच रहा है और अब खाया नहीं जा रहा है। दोनों ने भगवान के हाथ जोड़े, फिर हाथ धोकर भोजन समाप्त किया। यही महात्माजी का आशीर्वाद संत बोंदरु को जीवन भर साथ निभाता रहा। कहते है, भगवान शंकर का कोई गण था, जो बालक बोंदरु की परीक्षा लेने आया था।
* जय संत बोंदरु बाबा *
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