अरे संत बोंदरु हुयो रे ज्ञानी
अरे संत बोंदरु हुयो रे ज्ञानी । जे न खुद ख लियो पहिचाणी ॥ टेक॥
आत्म चिन्तन निशदिन करता।-2
अरे जेन प्रभु की सुणी ली वाणी ॥ 1 ॥ जेन खुद... ||
जीव मात्र में हरि बिराजे ।-2
अरे जेन नहीं सतायो कोई प्राणी ।। 2 ।। जेन खुद... ॥
गायो की नित सेवा करतो।-2
चारो गोहया पर नाखी रहयो ज्ञानी ।। 3 ।। जेन खुद... ॥
साधु-संत की सेवा करतो।-2
अरे वो भुख्या की कर मेजवानी ।। 4 ।। जेन खुद... ।
हरि हरि ऊ रोज गावतो।-2
अरे वन नवरंग' लियो पहिचाणी॥ 5 ॥ जेन खुद... ||
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