पंढरी महाराज पर कृपा
श्री पंढरी महाराज जो इसी वर्ष दि. 1 मार्च 2012 को स्वर्गवासी हो गये हैं, उन्होंने ही उनके जीवन की यह घटना बताई थी। महाराज, मैंने इसलिए कहा, क्योंकि बोंदरु बाबा की २ समाधी के महन्त को हमारे यहाँ महाराज कहने का रिवाज है । वे बचपन में जब बहत छोटी उस के थे, उनको बार-बार निमोनिया हो जाता था। पसिलयाँ चलने की बिमारी। यह बिमारी अधिकतर बरसात के मौसम में ही होती थी। उस समय दवाखाने कम ही हुआ करते थे। दवाखाने थे भी, तो भी गाँवों के लोग डॉक्टरों पर ज्यादा भरोसा नहीं करते थे। उनको जाणबड़वों पर अधिक विश्वास होता था। धागा-ताबीज बन्धवाने व बड़वे-भोपों से पानी छिटवाने में पक्का विश्वास होताथा । ग्राम नागझिरी से दूर छ:-सात किलो मीटर पर एक गाँव था। ___वहॉ के जाण से इलाज करवाते थे। इकलौता लड़का, माँ-बाप उसे लेकर पैदल ही उस जाण के पास ले जाते थे। दो चार दिन आराम होता और फिर वह बिमारी बालक को घेर लेती। गारा किचड़ भरा कच्चा रास्ता, बालक को उठाये चलना बड़ा दुष्कर कार्य था फिर भी क्या करते, मजबुरी थी। हर दो चार दिन में चाहे पानी गिरे, हवा चले कुछ भी हो, जाना तो पड़ता ही। क्योंकि बालक का दुःख देखा नही जाता था। एक दिन परिवार के मनमें आया कि हम बाबा बोंदरु की नित्य पूजा अर्चना करते है फिर भी बाबा हमारे बच्चे की बिमारी दूर क्यों नहीं करते, बेचारा बच्चा इतना दु:ख झेल रहा है। उसके बदले हमें भी कितनी तकलीफें उठाना पड़ रही है। उस रोज बच्चे को कुछ अधिक ही बिमारी ने घेरा था। बच्चे को रोने में भी तकलीफ हो रही थी, फिर भी बच्चा रो रहा था ।परिवार जनों ने बालक को ले जाकर मढ़ में जहॉ बाबा की मृदंग टंगी रहती थी, उसके नीचे जमीन पर सुला दिया। और बाबा को कहा-बोंदरु बाबा, अब हम इस बालक का ईलाज नहीं करवायेंगे चाहे यह जीये या मरे। हम बहुत परेशान हो गये हैं। अब यह बच्चा आपके जिम्मे है इसे जिलाओ या मरने दो। इसे आप ही सम्भालों । बच्चा बिलख-बिलख कर रो रहा था। घर वाले सभी को हिदायत दे दी की कोई भी बच्चे को नहीं उठायेंगा। भले ही यह मर क्यों न जाए। अब सब लोग मढ़ से बाहर आ गये। और अपने-अपने कामों में लग गये। कोई भी बच्चे की ओर ध्यान नहीं दे रहा था। बच्चा थोड़ी देर जोर-जोर से रोता रहा। फिर धीरे-धीरे रोता रहा। और अन्त में चुप हो गया। याने बच्चे को नींद आ गई। परिवार के लोग फिर भी बच्चे के पास नहीं गये। दो-तीन घंटा हो गये। बच्चे की कोई हलचल न देखकर परिवार वालों को शंका हई कि कही बच्चा सचमुच में मर तो नहीं गया ? बच्चे की मॉएवं कुछ सदस्यों ने जाकर देखा । बच्चे को हिलाडुलाकर देखा। बच्चे को उठाया तो बच्चा एकदम स्वस्थ था। उसकी निमोनिया की बिमारी एकदम साफ हा गई थी। वह हॅसने-खेलने लगा। तब से स्वर्गगमन तक उन्हें निमोनिया की बिमारी नहीं हुई। उनकी उम्र इस समय 80-90 वर्ष थी। यही बालक पंढरी महाराज थे।
* जय संत बोंदरु बाबा*
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