संत के चमत्कार
नाचने वाले रावल्या की कहानी में एक रावल्या की कहानी और है, उसका नाम था रुघनाथ। ऊँचा-पूरा, गोरा-चिट्ठा, स्वभाव से बहुत ही सौम्य, एक वाकया उसके साथ भी हुआ था। एक बार रुघनाथभाई को जन्माष्टमी के एक दिन पहिले से ही किसी दूसरे गाँव किसी कारण से जाना हुआ। उसे यह भी मालुम था कि कल जन्माष्टमी है और उसे बाबा के मढ़ में नाचना है। परन्तु मजबूरी वश जाना ही पड़ा, सोचा जन्माष्टमी की सुबह आ जाऊँगा। लेकिन वह जन्माष्टमी के पूरे दिन नहीं आ सका। जब शाम होने को आई तो उसके मन में व्याकुलता होने लगी कि अब तो मुझे जाना ही हैं। उसके रिश्तेदार उसे रोकते रहे लेकिन रुघनाथ भाई नहीं माने, वह तो रवना लग ही गये। अंधेरी रात एवं दो-चार दिन से गिरते हए पानी के कारण रास्ता किचड़ से भरा हुआ। पूरा रास्ता खेतों की चिकनी मिट्टी वाला, फिसलन भरा। सिर्फ एक बात १ जरुर थी कि उस वक्त पानी नहीं गिर रहा था, लेकिन बादल वाली घटाटोप अंधरी रात जरुर थी।
जब तक थोड़ा-थोड़ा उजाला था, तब तक रुघनाथ भाई जल्दी-जल्दी चलने का प्रयास करते र रहे, लेकिन अंधेरा घिरने पर तो वह लाचार हो गये क्योंकि पाँव कहाँ जमा रहे हैं और कहा फिसल कर जा रहा हैं, पता ही नहीं चलता था,कभी किचड़ में पांव तो कभी पानी में, रास्ता चलने में बड़ी परेशानी हो रही थी। उसे भय भी लगने लगा क्योंकि वह अंधेरे से डरता था। जोश में निकल तो आया परन्तु अब पछताने भी लगा था। तब उसे बोंदरु बाबा की याद आई, मन ही मन सोचने लगा-हे बाबा मुझे अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा हैं, चलते भी नहीं बन रहा हैं, बाबा! मुझे आपके मढ़ में नाचना है, इसलिए मैं अंधरे की परवाह न कर चल दिय था, परन्तु अब तो मुझे वहाँ पहुँचना मुश्किल ही लग रहा हैं, बाबा अब आप ही मेरी कुछ सहायता करें। वहाँ सब लोग मेरी राह देख रहे होगें। शायद बाबा ने प्रार्थना सुन ही ली और अपने रावल्या की मदद को आ ही गये। एक आदमी पीछे से चलता हुआ आया और रुघनाथ भाई के पास आकर पुछने लगा-कौन हो भाई ? कहाँ जा रहे हो ? तो रुघनाथ भाई ने पीछे मुड़कर देखा । अंधरे में स्पष्ट तो नहीं दिखाई दे रहा था, परन्तु यह तो समझ में आ रहा था कि कोई आदमी उसके पास आकर पुछ रहा है। उसमें हिम्मत आगई, बोला-मेरा नाम रुघनाथ है और मुझे नागझिरी जाना है। वह आदमी बोला- अरे! तुम रावल्या भाई हो, चलो मैं भी नागझिरी ही जा रहा हूँ। आप कहाँ चले गये थे, आज तो जन्माष्टमी है, तुमको तो बोंदरु बाबा के मढ़ में नाचना है। रुघनाथ भाई ने कहा -हाँ भाई, इसीलिए तो जाना पड़ रहा हैं, क्या करूं! अंधेरा हो गया और रास्ते में कीचड़ ही कीचड़। वह आदमी बोला चलो अब साथ-साथ चलते है ऐसा कहकर उसने रुघनाथ भाई को ऐसा बातों में उलझाया कि न तो किचड़ मालुम पड़ान रास्ते की दूरी और न रघुनाथभाई उसका नाम पुछ सके।
जब नागझिरी के पास ब्राह्मण कुँए के पास आ गये तो वह आदमी अचानक गायब हो गया। रघुनाथ भाई ने समझा, लघुशंका करने बैठ गया होगा, वह थोड़ी देर खड़े रहे जब वह आदमी नहीं आया तो रघुनाथ भाई अपने घर की ओर बढ़ दिए। घर आकर रुघनाथ भाई ने जल्दी-जल्दी स्नान किया और अपना नाचने का साज श्रंगार लेकर बाबा के मद में आ गये । यहाँ उन्होंने अपने साथियों को यह घटना सुनाई, सुनकर कुछ साथी कहने लगे-अरे! रावल्या भाई, बाबा ही तुमको साथ में लेकर आये हैं, तब रुघनाथ भाई की समझ में भी आया कि जब से वह आदमी साथ-साथ चला उसके बाद तो कहीं भी किचड़ नहीं लगा और चलने में भी परेशानी नहीं हुई तथा जल्दी ही इतना रास्ता पार कर लिया। सबने यह सुना तो एक साथ जोर से बोले-"संत बोंदरु बाबा की जै'। इसी क्रम में वर्तमान समय में मढ़ में नाचने वाले रावल्या श्री आसाराम भाई हैं। वह भी बहुत सालों से नियमित बाबा के मढ़ में श्रद्धा-भक्ति से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। इस समय उनकी उम्र लगभग 60-65 वर्ष हो गई है, परन्तु नाचने में कभी थकते नहीं हैं। एक बार में 100 चक्कर भी गोल घुम सकते हैं न तो उन्हें चक्कर आते न कभी थकते। बोदरु बाबा के पक्के भक्त हैं।
* जय संत बोंदरु बाबा*
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