गुरु रामदास स्वामी
गुरु रामदास स्वामी राजवंशी गुजर जाति के थे। इनका निवास-लीखी-घुघरी रियासत ग्वालियर के थे। किसी कारणवश इनका परिवार होशंगाबाद में आकर बस गया था। जब थोड़े बड़े हुए तो इनका मन न तो जमींदारी सम्भालने में लगा, न खेती-बाड़ी सम्भालने में। तब इन्होंने संत श्री राघोजी को अपना गुरु बना लिया और उन्हीं के सानिध्य में रहकर नर्मदा किनारे ईश्वर आराधना और भजन-पूजन करने लगे। अपने जीवन काल में यह एक सिद्ध योगी बन गये थे। अनेकों चमत्कार तो इनके बिना जाने ही जाया करते थे। गौ सेवा, मानव सेवा या प्राणी मात्र की सेवा में इनकी दृढ़ आस्था थी। किसी से कुछ लेते नहीं थे, भिक्षाटन भी नहीं करते थे। जो कोई कुछ श्रद्धा से भोजन में कुछ दे जाता, उसे ही सेवन करते थे। ये अपने गुरु के अकेले शिष्य थे और इन्होंने भी एक ही शिष्य बनाया था जिसका नाम था अमरदासजी। रामदासजी की पत्नी जो इन्हीं के साथ रहती थी, देवाबाई उनके छः शिष्य हुए।
1. पहला शिष्य श्रीचमनदास बाबा, जो बाद में करोंदा चले गये और वहीं जीवित समाधी ली।
2. दूसरा शिष्य श्री कान्हा बाबा, जो बाद में सोडलपुर-टिमरनी जाकर रहने लगे और वहीं जीवित समाधी ली।
3. तीसरा शिष्य श्रीभागीरथ बाबा, ये भीलखेड़ा चले गये और वहीं जीवित समाधी ली।
4. चौथा शिष्य श्री श्रवण बाबा, ये सतपुरा-होशंगाबाद चले गये और वहीं जीवित समाधी ली।
5. पाँचवाँ शिष्य श्री चतरु बाबा, जो हतवास-सुहागपुर जाकर बस गये और वहीं जीवित समाधा ली।
6. छटा शिष्य श्री बोंदरु बाबा, इन्होंने भौरागढ़ जिला बैतुल जाकर कम उम्र में ही तपस्या में लीन 100
हो गये थे। बाद में नागझिरी (खरगोन) में आकर बस गये और यहीं जीवित समाधी ली।
संत रामदासजी स्वामी की जो गुरु शिष्य परम्परा थी इसे सिंगापथी साधु कहा जाता था. इस पंथ के साधु संत कोई ब्रह्मश्चारी रहकर या कोई गृहस्थाश्रम में रहते हुए पत्नी बच्चों के साथ रहकर भी ईश्वराधना, भजन भक्ति आदि करके ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न किया करते थे। ये साधुसंत मुंदग, झांझ, मंजीरा बजाकर जो भजन गाते थे, उन्हें भी सिंगापंथी भजन या कबीर पंथी भजन कहते हैं। ये साधु-संत बड़े चमत्कारी हुआ करते थे। ईश्वर आराधना करते हुए जीवित समाधी लेने में इनका अटल विश्वास था। निमाड़ के श्री सिंगाजी, उनके गुरु मनरंगस्वामी, बोंदरु बाबा व उनके गुरु रामदासजी स्वामी, ये सभी सिंगापंथी साधु हीथे। बहुत अधिक इतिहास तो नहीं प्राप्त हुआ, परन्तु जो प्राप्त हुआ संक्षेप में इस प्रकार है
उपर्युक्त गुरु रामदास जी बाबा का इतिहास, श्री जगन्नाथ मण्डलोई शिक्षक अपने साथियों के साथ होशंगाबाद गये थे, और वहाँ रामदास बाबा की समाधी के महन्त एवं लक्ष्मण बाबा की समाधी के महंतो से मिलकर जानकारी जुटाई, उसी के आधार पर यहाँ प्रस्तुत की गई है। संत बोंदरु बाबा के जीवन एवं चरित्र-चित्रण में उनके गुरु बाबा रामदास जी स्वामी का भी थोड़ासा चरित्र-चित्रण अनिवार्य समझकर वर्णन कर दिया।
* जय गुरु रामदासजी स्वामी *
0 टिप्पणियाँ