संत के चमत्कार (डाकुओं से गाँव की रक्षा)
बात विक्रम सम्वत् 1914 की है, उस समय डाक लोग अपने दल बनाकर गाँव के गाँव लुट लिया करते थे। वो भी एलान (सूचना) करके । अंग्रेज छोटे-छोटे राज्यों को हराकर अपना साम्राज्य बना रहे थे। सन् 1857 की क्रांति इसी समय हुई थी। तब डाकुओं का एक दल ग्राम नागझिरी में भी आया। गाय गोया पर, जहाँ संत बोंदरु बाबा की समाधी बनी हुई है, वहाँ आकर गाँव में दहशत फैलाने के लिए उन्होंने (उस मैदान में आकर) बन्दूकों से हवाई फायर किये। डाकुओं के दल में बीस-पच्चीस डाकु थे। उस समय न गाँव में आज जैसे बिजली का प्रकाश था न अन्य किसी प्रकार का प्रकाश किया जाता था। उस समय न तो गाँव में इतनी दुकानें हुआ करती थी कि लोगों की चहल-पहल होती रहे। उस समय अंधेरा होते ही लोग अपने-अपने घरों में कैद हो जाते थे। रात के आठ-दस बजे के लगभग सुनसान सन्नाटे वाली रात में बन्दूकों के धमाकों की आवाज सुनकर गाँव वाले सहम गये। कोई छुप गये तो कोई गाँव से बाहर भागने की तैयारी करने लगे। लेकिन बन्दूकों के फायर होने के एक घंटे भर बाद तक भी कोई डाकु गाँव में नहीं आया तो कौतुहल वश गाँव वाले कन्डील-मशाल आदि उजाला लेकर संत बोंदरु बाबा की समाधी स्थल वाले मैदान में गये तो वहाँ जाकर देखा कि डाकु लोग इकट्ठा झुण्ड बनाकर खड़े हैं। इन गाँव के लोगों की ओर या मशालों के उजाले की ओर कोई ध्यान नही दे रहा था। लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा क्या हो गया कि डाकु हमारी ओर देख तक नहीं रहें है ? जब कुछ आहट डाकुओं को आई तो वे घबराकर कहने लगे-हमें मारना मत, हमें मारना मत, हमने हमारी बन्दूकें दूर फेंक दी है। चाहों तो उन्हें उठा लो। हमको कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा हैं । न जाने हमें क्या हो गया हैं ? फिर तो गाँव के लोग उनके पास चले गये। डाकुओं की बन्दूकें उठा ली और उन्हें पुछा-कि तुम यहाँ आएँ कैसे ? तो उन डाकुओं ने कहा-हम डाकु हैं और हम आपका गाँव लुटने आए थे। यहाँ खड़े होकर जब हमने बन्दूकों से फायर किये तो हमारी आँखे अंधी हो गई। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। ऐसा क्या हो गया हैं हमें ? तब गाँव के लोगों ने उनके हाथ पकड़कर संत बोंदरु बाबा की समाधी के सामने ले गये कि शायद बाबा का ही चमत्कार हो ? समाधी की परिक्रमा करवाई और समाधी के सामने लाकर बैठा दिया। तब सभी डाकुओं ने बाबा बोंदर से खुब क्षमा याचना की और कभी भी इस गाँव नागझिरी में नहीं आने की कसमें खाई तो डाकुओं को दिखाई देने लग गया। गाँव वालों से भी माफी मांगी। तब उनकों उनकी बन्दूकें लौटा दी गई और वे डाकु चले गये, जो आज तक इस गाँव नागझिरी में नहीं आयें।
* जय संत बोंदरु बाबा *
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