भक्तों के छोटे-छोटे अनुभव एवं दर्शन (बाबा बोंदरू विष्णु यज्ञ में) | Bondaru Baba Nagziri Khargone

 भक्तों के छोटे-छोटे अनुभव एवं दर्शन (बाबा बोंदरू विष्णु यज्ञ में) 

5 संत बोंदरु बाबा की समाधि स्थल के पास के मैदान में एक बार विष्णु यज्ञ हुआ था। सन् 1959 की बात है यज्ञ में वैसे तो बहुत सारे साधुमहात्मा आये थे और लगभग सभी के लिए अलग-अलग हरे पत्तों की कुटियाएं बनाई गई थी। परन्तु एक महात्मा न जाने कहाँ से आये थे। यज्ञ में आहुतियां डाली जाती उस समय कही से आ जाते और चुपचाप वहां आकर बैठे रहते, न किसी से बोलते और नही भोजन करते। भोजन करने के समय न जाने कहां चले जाते । उन्हें भोजन के लिए ढुंढते भी रहते परन्तु कोई भी उनका पता नहीं बताता था। सिर्फ आहुतियां डालते रहते तो वहां बैठे रहते, आहुतियां डालना बन्द हुई कि वे कहां चले जाते पता ही नहीं चलता था। न किसी से मिलते न ही बातें करते । सात दिनों के यज्ञ अवधि में किसी से नहीं बोले, नहीं कोई उनका नाम पता जान पाया। सात दिनों तक यही क्रम रहा,कोई नहीं जान पाया कि वह कौन है? कहां से आते है? कहां चले जाते है। परन्तु जब सात दिन पूरे हो गये, यज्ञ की पूर्णाहुति हो गई तो अचानक सभी व्यवस्थापकों के दिमाग में यह बात बिजली की तरह कौंध गई कि अरे वे तो “संत बोंदरु बाबा' ही होंगे। जिनको हम पहिचान नहीं पाये। 

*जय संत बोंदरुबाबा * 

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