बाबा भक्त श्री दगडुजी सोलंकी
"श्री दगडुजी गप्पलजी सोलंकी" यह वह नाम है जो सिंगापंथी एवं कबीर पंथी भजनों के महान गायक एवं गरीबदास' नाम से हजारों भजनों के रचीयता; निमाड़ के जाने-माने निमाड़ी लोक गायकों में श्रेष्ठ गायक। कई बार इन्दौर आकशावाणी केन्द्र पर एवं रायपुर आकाशवाणी केन्द्र पर अपने भजनों, अपनी आवाज एवं अपने मृदंग वादन का जलवा दिखाने वाले संत बोंदरु बाबा के परम भक्त थे। उनके जीवन की एक सच्ची घटना मुझे मेरे पिताजी श्री झबेसिंहजी दरबार ने बताई थी। दगडु दाजी शायद बचपन से ही निमाड़ी लोक गायकी में रुचि रखते थे एवं संत बोंदरु बाबा पर अगाथ श्रद्धा रखते थे। उनके प्रथम पुत्र ने जन्म ले लिया था। छोटा बच्चा था और बिमार हो गया। जन्माष्टमी पर्व पर संत बोंदरु बाबा के मढ़ में रास मण्डल गाने के लिए शाम से ही दगडुजी ने मृदंग अपनी कमर पर बाँधी और बजाने-गाने लगे। बारह बजे रात को कृष्ण जन्म की आरती होने के बाद फिर से भजन गाने लगे कि लगभग एक बजे रात को घर से रिश्तेदार एक आदमी आया और दगडुजी के कान में घीरे से कहा ताकि अन्य लोगों को सुनाई नदे। कहा-तेरे बच्चे की तबियत ज्यादा ही खराब हो गई है। परन्तु सुनलेने के बाद भी दगडुजी ने अपना भजन गाना बन्द नहीं किया। संत बोंदरु बाबा के भरोसे अपने बच्चे को छोड़कर भजन गाते रहे-गाते रहे। फिर लगभग तीन बजे रात को एक आदमी आया और दगडूजी के कान में धीरे से कहा-तेरे बच्चे की मृत्यु हो गई। लेकिन फिर भी दगडू जी गाते रहे; किसी को अन्दाजा भी नहीं होने दिया कि घर में इतनी बड़ी घटना घट चुकी हैं और वे भजन गा रहे हैं। सुबह-सुबह जब भजन गाना बन्द किया तब जल्दी से चार-पाँच साथियों को यह बात बताई और उनको लेकर अपने घर पहुँचे । मृत बाल क को उठाकर शमशान ले गये। वहाँ से वापस आये, नहाये और फिर से मृदंग कमर पर बाँधी व गाने बजाने लगे। उस समय शायद कुछ लोगों को बुरा भी लगा होगा। परन्तु दगडू जी ने मन में सोचा कि ईश्वर की भक्ति से बढ़कर कुछ भी नहीं है। मैं ईश्वर भक्ति को नहीं छोडुगां, चाहे जैसी मुसीबत आ जाये । बाबा बोंदरु जो भी करेंगे; अच्छा ही करेंगे। हुआ भी वही ! एक साल बाद जन्माष्टमी के ही दिन उनके यहाँ दूसरा पुत्र पैदा हुआ और दो-दो साल के अन्तराल से उनके यहाँ चार-पाँच संताने उत्पन्न हुई फिर एक भी संतान खंडित नहीं हुई। सभी संताने वर्तमान में भी जीवित है । भरा पूरा परिवार मौजुद है। इस घटना को लगभग 60-65 वर्ष हो गये।
* जय संत बोंदरु बाबा *
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