संत के चमत्कार (अपने आप मृदंग वादन)
बात उस समय की है, जब गाँवों में हैजा (कालरा) खुब फैला करता था। किसी दिन तो एक गाँव में पाँच-पाँच, दस-दस मनुष्यों की मौत हो जाती थी। रात में लोग पान" निकलने में डरते थे और यह बीमारी अधिकतर श्रावण के महीने में ही आती थी। एक नागझिरी में भी हैजा फैल गया। दो-चार लोग रोज मरने लगे। भक्तों ने बाबा के मन में महीने तक गाये जाने वाले भजनों को बीच में ही बन्द कर दिया। लगभग आठ दिन तकलाकार मढ़ में किसी ने भजन नहीं गाये । नौवें दिन खुंटी पर टँगा हुआ मृदंग बाबा की आरती करने समय रात के बारह बजे अपने आप बजने लगा। आस-पास रहने वाले लोगों ने सना । महन्त र भी सुना, सबने सोचा आठ दिन से मृदंग बन्द हैं और आज अचानक बारह बजे रात को कौन बजा रहा हैं। सब मढ़ में इकट्ठे हो गये। चिमनी का उजाला ले जाकर मढ़ में देखा, कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था और खुंटी पर टँगा मृदंग अपने आप बज रहा हैं । सब ने संत बोंदरु बाबा के हाथ जोड़े, क्षमा माँगी और कहा-हम कल से ही भजन गाना शुरु कर देंगे। तब जाकर मटंग बजना बन्द हुआ। उस दिन के बाद ग्राम में हैजे से एक मनुष्य भी नहीं मरा और भक्त लोग रोज भजन गाते रहे।
* जय संत बोंदरु बाबा*
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