अंजान आदमी का आम लाना
संत बोंदरु बाबा की समाधी पर मेले के दिन छत्र के पास आम फल (केरिया) तो टांगते ही है। याने जन्माष्टमी के दिन अवश्य आम मिलते ही है । परन्तु एक वर्ष ऐसा भी आया था, तब किसी को आम फल न तो आरती लेकर जाने वाले पंढरी महाराज को और न ही किसी अन्य भक्त को मिले थे। सम्पूर्ण गाँव में उदासी छा गई थी। त्यौहार का पर्व होते हुए भी कोई खुश नहीं लग रहा था। सभी गांव की जनता सोच रही थी शायद बोंदरु बाबा गॉव से नाराज हो गये है। परन्तु नवमी के रोज सुबह, नई बाँस की टोकनी में कारे लाल कपड़े में रखकर टोकनी भरकर कैरियां लेकर अंजान आदमी आया। जहां पर दगडूदाजी मृदंग पर मण्डली के साथ बैठे भजन गा रहे थे, और वहां गाँव की बहुत सारी जनता भी बैठी हुई थी, वह आदमी वहीं आया और पूछा- ये केरिया मैं लाया हूं, कहां रखू ? इतना सुनना था कि सभी लोग खुश हो गये और बाबा की जै-जै करने लगे। हर आदमी के चेहरे पर मुस्कान लौट आई। गांव में भी खबर तत्काल फैल गई कि एक आदमी बाहर गांव से आम लेकर आया है। उस आदमी को आदर से बैठाया गया, पानी वानी पिलाया और उसका परिचय पूछा- तो उसने अपने गाँव का नाम दसनावल और जाति बनिया बताया। उसको भोजन करने का भी बोला और ये भी कहा कि आज मेला देखना, यहीं पर रात्री विश्राम करना और कल जाना। उस आदमी ने सभी स्वीकार किया। और थोड़ा देर बैठकर घूमने फिरने के बहाने बाहर चला गया। फिर किसी को नहीं दिखा। उसे ढूंढा भी कि मिल जाये तो उसे भोजन करा दें। परन्तु वह नहीं मिला। उसे तो सैकड़ों आदमियों ने देखा किसी को तो बाद मैं अवश्य मिलता पर नहीं मिला। लोगों ने अंदाजा लगाया कि शायद कैदिन वाला भाई दसनावल लौट गया।
आठ पन्द्रह दिन बाद नागझिरी के कुछ लोगों को दसनावल गाँव में से निकलना हुआ .तो सोचा ; चलो उस कैरी देने वाले भाई से मिल लेते है, उस रोज मेले के दिन बिना बताये ही लोट आये थे। वहां के लोगों से उसका नाम व जाति बताकर, उसका घर का पता पूछा, तो गाँव वाले सभी इंकार कर गये कि इस जाति का तो कोई हमारे गाँव में है ही नहीं, न इस नाम का कोई है । निराश होकर नागझिरी आ गये । और नागझिरी में यह बात बताई तो कुछ लोगों ने अंदाजा लगाया कि शायद वे बाबा ही आम (कैरियां) देने आये थे।
*जय संत बोंदरु बाबा *
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