आम फल प्राप्ति
मैं स्वयं (लेखक-बख्तावरसिंह मण्डलोई) छोटा था शायद पांचवी-चौथी में पढ़ता हूंगा तथा मेरा एक मित्र था जिसका नाम धीरुसिंह आयु लगभग समान। एक बार जन्माष्टमी पर्व को उपवास का दिन होता है, इसलिए सुबह से नहा धोकर वैसे ही बिना कारण घूमते-फिरते बोंदरु बाबा की समाधी स्थल से पूर्व दिशा में भोकरिया नाले की ओर मथुरालाल लोहार की बाड़ी में आम के वृक्ष के पास तक चले गये। बचपना था, सोचा चलो आम ढुंढते है । क्यों कि यह बात मालूम थी कि आज पुजारी पंढरी महाराज को आम मिलेंगे, और वे लेने जावेंगे। आम के वृक्ष के चारों और दोनों ने खूब देखा, घूमे, अन्दर की ओर से भी घूम-घूम कर थक गये, परन्तु एक आम भी नहीं मिला तब विचार आया कि शायद आम ढुंढने वाले, ढुंढते समय बोंदरु बाबा की जय बोलते होगें। हम दोनों आम के गोड़ (तने) के पास खड़े हो गये, पूर्व की ओर मुंह किया और दोनों एक साथ जोर से बोले-“संत बोंदरु बाबा की जय"। ऊँचे हाथ कर, ऊँचा मुंह कर जैसे हमारी जै शब्द मुंह से निकला, हाथ भी और मुंह भी - ऊंचे के ऊंचे रह गये। क्या देखते है कि एक मोटा लकठा (मोटी डाली) के बीच में बिना पत्ते की छोटी सी डाली। जिसमें सिर्फ पांच केरिया, लगभग 50-50 ग्राम वजन की होगी ली दोनों को एक साथ दिखी। हम दोनों अवाक ! क्या करें? आम तो मिल गये। अब आ प विधि है? उनको लाने की। घबराये और भागते हुए पंढरी महाराज के पास उनके पास तथा सारी दास्तान उनको सुना दी। शायद वे भी आरती लेकर कहीं जाने की ही तैयारी कर रहे - थे। हमारी बात सुनकर हमारे साथ मथुरालाल लोहार की बाड़ी में आए और पूजन करने सम्मान के साथ फलों को उतारा और ले आये। यहां पर बोंदरु बाबा के महंत जन्माष्टमी के दिन आरती लेकर किसी भी आम वृक्ष के पास जाकर फल ढुंढते है तो फल मिल जाते है। दो चार साल से श्री पंढरी महाराज वृद्ध एवं कमजोर हो गये थे तो आमफल बाहर से ही भक्त लोग ने आते है या कोई खबर भेज देता है तो यहां “आरती सेवा समिति के सदस्य जाकर ले आते है।
* जय संत बोंदरु बाबा *
0 टिप्पणियाँ