ईश्वरीय चमत्कार (गौ सेवा)
एक दिन संत बोंदरु दराता (हसिया) लेकर घास लेने जंगल में गये, आज उन्हें दो बोझा घास लानाथी, क्योंकि न तो माँ की मजदूरी लगी थी, न उनकी स्वयं की। अत: एक बोझागायों को डालना था और एक बोझा घास बेचकरगृहस्थी का सामान लाना था। गर्मी का मौसम था, चारों ओर घास सुख चुकी थी, जंगल में गये, एक जगह अच्छी नरम घास देखकर काटने का इरादा किया, जैसे ही एक हाथ से घास पकड़ी और दूसरे हाथ से हसिया लगाया, घास काटने के लिए कि एकाएक वहाँ से एक खरगोश भागा। संत बोंदरु घबराये और खड़े होकर पछताने लगे कि आज उनकी वजह से आराम करते हुए एक खरगोश को भागना पड़ा। हरि.....हरिः .... । ये मैंने क्या किया फिर दूसरी जगह जाकर घास काटने का इरादा बनाया। वहाँ भी एक हाथ से धास पकड़ी और दूसरे हाथ से दराता लगाया कि वहाँ से भी एक खरगोश भागा। अब संत विचार करने लगे कि इस घास के जंगल में तो खरगोशों का निवास है, इसलिए मुझे यहाँ से घास नहीं काटना चाहिए। ऐसा विचार कर आगे दूर जाकर फिर घास उगी देखकर उसे काटने का मन बनाया। पहले घास में घूम फिर कर देखा कि किसी जानवर या पक्षियों का बसेरा तो नहीं है ? जब संतोष हो गया कि यहाँ कुछ नहीं है, तब धास काटना शुरु किया परन्तु ईश्वर की इच्छा तो कुछ और ही थी। अचानक वहाँ से भी एक खरगोश भागा। अब तो संत ने घास काटने का इरादा ही बदल दिया और भगवान का चिंतन करते हुए भजन गुन-गुनाने लगे। सोचने लगे-'"हे ईश्वर आपकी माया आप ही जाने, अगर आप मुझे घास नहीं काटने देंगे, तो गौ माताएँ गोहया पर घास ढुढ़ेगी और नही मिलने पर निराश मन घरों की ओर चल देंगी।
उधर मेरी माताजी भी घर में इन्तजार कर रहीं होगी,कि बोंदरु घास बेचकर कुछ सामान लायेगा। तब भोजन बनेगा। मेरी तो दोनों माताएँ उदास हो जायेंगी, प्रभु! उन्हें दुःख होगा। परन्तु हे प्रभु ! हे हरिः....मैं आपकी मर्जी के बिना कैसे घास काट सकता हूँ? आपकी माया आपही जाने । हे हरि...हे हरि...।" जब संत बोंदरु बिना घास लिए वापस गाँव की ओर चले तब गौधुली बेला हो गई थी, मतलब गायें जंगल से वापस घरों की ओर लौट रही थी। संत बोंदरु हरिः इच्छा, हरि: इच्छा करते हुए गोहया पर आये, तो क्या देखते हैं कि गायें मजे से घास खा रही है। यह देखकर संत बोंदरु ने ईश्वर को हाथ जोड़कर धन्यवाद किया। सोचने लगे शायद माँ कहीं मजदूरी करने गई होगी. तो आते वक्त घास ले आई होगी और यहाँ डाल दी होगी। परन्तु माँ तो कहीं भी मजदूरी करने नहीं गई थी ? फिर क्या हुआ होगा ? खड़े होकर ऐसा विचार कर ही रहे थे कि उन्हें दो आदमी दिखाई दिए। उनसे जाकर बोंदरु बाबा ने पुछा-क्यों भाई ? यहाँ पर गायों को घास किसने डाली ? तो वे कहने लगे अरे! बोंदरु तुम भुल गये क्या ? ये घास अभी तो तुम डाल के गये हो और अब हमसे पुछ रहे हो कि ये घास किसने डाली ? संत बोंदरु आश्चर्य करते हुए घर आए तो माँ घर में नहीं थी, दरवाजा लगा था ।
संत बोंदरु ने घर का दरवाजा खोला तो वहाँ पर धोती बंधी हुई पोटलियाँ (गठरिया) रखी थी, जिनमें गृहस्थी का खाने-पीने का सामान आटा दाल, चावल, नमक, मिर्च आदि बन्धे हुए थे। अब तो संत को पूर्ण विश्वास हो गया कि माँ अवश्य मजदूरी करने गई होगी। ऐसा सोचते हुए घर से बाहर निकलकर दरवाजा लगाने लगे कि माताजी आ गई। कहने लगी-"बोंदरु ! तू यह सामान रखकर कहाँ चला गया था ? मैं तझे ददने बाहर गई थी। अब संत के चकराने की बारी थी। संत कहने लगे-माँ! ये सामान, तम नहीं लाई? माँ ने कहा-नहीं तो!! क्या तू नहीं लाया? हैसंत बोदरु-नहीं माँ, आज तो मैं घास भी नहीं लाया, और नसामानही लाया। माँ ने कहा-तो फिर कौन ये सामान लाया ? और यहाँ रख गया ? परन्तु यह धोती तो अपनी ही है। दरवाजा लगा था। कोई अन्य ये सामान अपने घर के अन्दर क्यों रखेगा ? अवश्य उस परमपिता परमात्मा की माया का चमत्कार है। संत बोंदरु-हाँ माँ! अवश्य! आज जंगल में जहाँ मैं घास काटने झुकता, वहीं से खरगोश भागता था।
आखिर मैं बिना घास लाये ही घर आ रहा था, तो देखा, गोहया पर गायें रोज की तरह घास - खा रही थी। शायद कोई ने डाल दी थी, मैं तो समझा था कि तुमने डाली होगी और कुछ लोगों का मैंने पुछा-तो वे कहने लगे, ये घास तुम ही तो अभी डालकर गये हो । माता ने कहा-बेटा! * अवश्य परमपिता परमात्मा का ही चमत्कार है। वह, हमें बतलाना चाहते हैं कि वे हमेशा हमारे साथ है। तू कहा करता है न कि माँ मुझे मेरे भगवान कब मिलेंगे ? कब मिलेंगे ? तो उस दया निधान ने तुझे संकेत से बता दिया कि वे कहीं दूर नहीं है! बल्कि वे तो हमेशा हमारे साथ रहकर, हमारे हर काम में सहयोग देते है और हमारे जीवन निर्वाह में सहायता पहुँचाते हुए अपने । “योगक्षेमं वहाम्यहम्' का वचन पूरा करते है। धन्य हो बेटा, धन्य हो। आज हमने ईश्वरीय * माया के चमत्कार का दर्शन कर लिया। अब शीघ्र ही हमें परमपिता के भी दर्शन होंगे। माँ और संत बोंदरु दोनों ने हाथ जोड़े और ईश्वर का ध्यान करने लगे।
* जय संत बोदरु बाबा* 20
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