संत के जीवन की घटना | Sant Bondaru Baba ke Jivan Ki Ghatana | Sant Bondaru Baba Nagziri Khargone Web

संत के जीवन की घटना 

संत बोंदरु बाबा गली में से चलते हुए अपने घर जा रहे थे कि एक गाय गली में से पीछे-पीछे चलने लगी। जैसे ही संत अपने घर का दरवाजा खोलकर अन्दर गये, गाय दरवार खड़ी हो गई। संत ने जब गाय को दरवाजे में खड़े देखा तो घर में से एक रोटी ले आये और को खिलाने लगे। इतने में संत की माताजी राधाबाई बाहर से आ गई। माँ ने कहा-अरे। बोंडर ये रोटी क्यों खिला रहा है ? मैंने तो गाय को देने के लिए एक अलग से छोटी रोटी बनाना वह मैं एक गाय को खिला भी चुकी हूँ। ऐसा कहकर माताजी दरवाजे में अन्दर की दी। उन्हें पीछे की ओर से आवाज सुनाई दी-“माँ तेरा बेटा बहुत बड़ा संत है, इसलिये मैं के हाथ से रोटी खाने आई हूँ"। माताजी ने सुना तो वे पीछे पलटी और देखा। परन्तर महिला दिखाई नहीं दी, तो वह वापस दरवाजे के पास आकर संत बोंदरु से पछने लगी "कौन बोला था अभी?" संत ने कहा-“कोई नहीं। अभी तो कोई आया ही नहीं।" तबगान फिर कहा-माँ मैंने कहा था, तेरा बेटा एक महान संत है, इसलिये मैं उनके हाथ से रोटी खाने आई हुँ । 

अब की बार संत को भी यह आवाज सुनाई दी और माताजी को भी, माता राधाबाई तुरन्त समझ गई कि यह तो गाय बोल रही है, उन्होंने गाय के चरण छुए और हाथ जोड़ कर संत बोंदरु से भी गाय के चरण छूने को कहा। परन्तु गाय संत के झुकने के पहले ही वहाँ से वापस पलटी और गली की मोड़ में जाकर अदृश्य हो गई। माताजी राधाबाई और संत बोंदरु दोनों हक्के-बक्के से देखते ही रह गये। एक बार ग्राम नागझिरी में संत बोंदरु बाबा के गुरु स्वामी रामदासजी कुछ भक्तों के साथ भ्रमण करते हुए पधारे। उनके ग्राम में आगमन की बात सुनकर संत बोंदरु भी दर्शन करने के लिए पहुंचे। जहाँ गुरु रामदास जी ठहरे हुए थे, वहाँ जाकर गुरु के चरण छुए और हाथ जोड़कर खड़े हो गये। गुरु रामदास जी बोले-"अरे बोंदरु कुशल से होना ? तो बोंदरु न हामा भरी और कहा-हाँ गुरुदेव, आपकी कृपा है। फिर गुरु रामदास जी बोले -अरे, बोदर हमारा इच्छा फल खाने की हो रही है, कोई फल ले आओ। संत बोंदरु ने कहा-जी गुरुदेव कहकर वापस घर की ओर चले। सोचने लगे, अभी तो कोई फल मिलने से रहा, अब गुरुदेव का काम फल लाकरदँ? हे प्रभु! क्या मैं, मेरे गुरु की इतनीसी इच्छा की भी पर्ति नहीं कर पाऊगा : मेरी रक्षा करो, नाथ अब मैं क्या करूं? घर जाकर माँ से कहता हूँ, शायद वह कोई मदद जब संत घर आये तो माँ कहीं बाहर गई हुई थी। घर का दरवाजा लगा हुआ था । 

सत दरवाजा खोला, उनकी नजर सबसे पहिले जहाँ गई, वहाँ टोकरी में पके हुए आम रख उस समय आमों का सीजन नहीं था, परन्तु संत को मनोवांछित वस्तु मिल गई ता तु मिल गई तो कोई अन्य विचार उनके मन में आया ही नहीं, सोचा माँ कहीं से आम लाई होगी। वे सीधे आमों की टोकरी उठाकर वापस गुरु के पास लौट गये। गुरु रामदास जी ने बे मौसम पके आमों की टोकनी देखी तो अत्यन्त प्रसन्न हो गये और संत बोंदरु को आशीर्वाद दिया। कहा-बोंदरु, तुम धन्य हो, तुम हमारी परीक्षा में सफल हुए, आज हमें आमफल भेंट कर अपना जीवन सफल बना लिया । यही आम फलों के कारण से तेरा यश दुनिया में फैलेगा। जो भी तेरे दिये हुए आमफल खायेगा, उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। संत बोंदरु ने हाथ जोड़े और कहा-गुरुदेव, मुझे आपके साथ ले चलो । गुरु रामदास जी ने कहा-नहीं बोंदरु, तेरी ईश्वर भक्ति देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ । यही रहकर ईश्वर भक्ति करो और भक्ति का प्रचार भी करो। ईश्वर तुम पर बहुत प्रसन्न है। 

जब संत बोंदरु उदास मन वापस घर आए तो माँ घर आ गई थी। संत बोंदरुने माँ ने कहामाँ आप जो पके आम लाई थी, मैंने गुरु को भेंट कर दिए। माँ आश्चर्य से कहने लगी- अरे! पके आम !! मैं कब लाई? क्या अभी आमों का मौसम है ? जो तू पके आमों की बात कर रहा है। संत बोंदरु की समझ में तब आया कि वे आम जो गुरु को भेंट में दि है वे तो साक्षात् ईश्वर द्वारा दी गई भेंट है।


* जय संत बोंदरु बाबा *


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