संत बोंदरु का आशीर्वाद (गाय को जीवन दान) | Sant Bondaru Baba Nagziri Khargone Web

संत बोंदरु का आशीर्वाद (गाय को जीवन दान) 

बाबा बोंदरु की महिमा की चर्चा जब अन्य गाँवों में फैलने लगी, तो लोग उनके उपदेश सुनने व भजन सुनने आने लगे और अपने आप को बाबा का भक्त या शिष्य समझने लगे । बाबा से इस बाबद मनुहार भी करने लगे कि वे उनको अपना शिष्य बनाले । कुछ लोगों को बाबा ने शिष्य भी बनाया, परन्तु बहुत कम लोगों को यह सौभाग्य मिला । बाबा का तो अब जीवन ही बदल गया, वे पैदल ही नर्मदास्नान को भी जाया करते थे। अपने भक्तों या शिष्यों को मिलने भी उनके गाँवों में जाने लगे तथा उनका दुःख-दर्द समझ कर उनकी सहायता भी कर दिया करते थे। 

बाबा के चाहने या न चाहने के बावजूद भी ईश्वरीय चमत्कारों द्वारा दु:खी इन्सानों के साथ भक्तों या शिष्यों को बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होने लगा। बाबा कमर से नीचे एक सफेद धोती लपेटे रहते तथा कंधों पर दूसरी सफेद धोती डाले रहते । कांधे पर लटकाएँ एक झोला एवं एक हाथ में एक लोटा जिसमें रस्सी लगी होती, अपने साथ रखते थे। यही उनकी साधारण वेशभुषा थी। एक बार बाबा बोंदरु बड़वानी की ओर अपने भक्तों या शिष्यों से मिलने चले गये। बड़वानी में एक भक्त था, नाम था उसका रामसिंह। जैसे ही रामसिंह के घर के आवार का दरवाजा पार कर भीतर आवार में कदम रखा, तो क्या देखते है कि एक स्वस्थ्य गाय हाल ही दो-चार दिन की जनी हुई, मर गई है। 

उसका छोटा-सा चंचल बछड़ा गाय के आस-पास उछल कुद कर रहा है और बार-बार आकर गाय के थनों को मुँह लगाकर दूध पीने का प्रयत्न करता है। उसके इस करतब को देखकर रामसिंह भाई के परिवार की महिलाएँ और पुरुष मरी हुई गाय के पास खड़े होकर आँसु बहा रहे हैं। अपने गुरु संत बोंदरु को बाबा को आया देखकर सब ने. आँसु पोछे। जब बाबा ने देखा तो पुछा-भाई रामसिंह! क्या हो गया ? तो रामसिंह ने बताया कि-गाय अभी दो-चार दिन पहली ही जनी है और न जाने रात में क्या हुआ कि सुबह मर गई, अब उसके बछड़े को देख-देख कर दुःख हो रहा है कि वह भी मर जायेगा, क्योंकि अभी यह बछड़ा घास खाना तो सीखा ही नहीं । बाबा ने कहा-ठीक है। मैं अभी नर्मदा स्नान करने जा रहा हूँ, जब तक मैं नहीं आ जाऊँ, तब तक गाय के मृत शरीर को फेंकवाना मत । ऐसा कहकर संत नर्मदा मैया में स्नान करने नर्मदा किनारे राजघाट चले गये। स्नान करके जब वापस आये तो लोटे में नर्मदा जी का जल भर लाएँ। रामसिंह भाई के घर आते ही संत ने पहिले मृत गाय के हाथ जोड़े। हाथ जोड़ कर ही उसकी पाँच बार परिक्रमा की, लोटे से नर्मदा मैया का जल हाथ में लेकर तीन बार मृत गाय को छींटा और कहा-हे गाय माता, देख तेरा बछड़ा तेरे बिना कितना व्याकुल हो रहा है। वह भुखा है, मैया उसे दूध पीला। उठो! मैया उठो !! देर न करो। माँ बछड़ा भुखा हो गया है। देखते ही देखते मृत गाय खड़ी हो गई और अपने बछड़े को दूध पिलाने लगी। उपस्थित जन समुदाय बोंदरु बाबा की जै जै कार करने लगे। 

यह समाचार जंगल की आग की तरह पूरे गाँव में फैल गया। संत बोंदरु बाबा के दर्शन २ करने वालों का भाई रामसिंह के घर पर भारी जमावड़ा हो गया। संत बोंदरु ने सब को समझाया- “हे भाईयों मुझे कोई योगबल या तपोबल नहीं प्राप्त है, इस संसार में जो कुछ भी होता है, सब केवल ईश्वर की कृपा से ही होता है। उस महान् प्रभु की महा-महिम माया अघटनघटना पटीयसी कहलाती है। वह कुछ भी कर सकती है, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है, इसलिए आप लोग मेरी जय जय कार मत करो, बल्कि परमात्मा के प्रति अपनी भक्ति को बढ़ाओं, नाम स्मरण करो, चिंतन भक्ति करों, अपने दैनिक जीवन के काम करते हुए भी परम पिता परमात्मा का चिंतन करते रहो, भजन-पूजन करो। यही उत्तम है।" इस प्रकार उपदेश देकर संत ने भक्तों को विदा किया। शाम को रामसिंह भाई के घर पर भजन-भक्ति का आयोजन भी हुआ। पान-प्रसादी बाँटी गई। संत ने रात्रि विश्राम भी रामसिंह भाई के घर पर ही किया। 

* जय संत बोंदरु बाबा *

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