संत बोंदरु बाबा का आशीर्वाद (सुखा कुँवा भरना) | Sant Bondaru Baba Nagziri

संत बोंदरु बाबा का आशीर्वाद (सुखा कुँवा भरना) 

मनुष्य के जीवन में कोई एक बात विचित्र हो जाती है तो उसकी ख्याति सर्वत्र फैल जाती है, फिर जिसका सारा जीवन ही रहस्य मय हो चला हो, वह भला कब तक संसार की आँखों से अपने आप को छुपा सकता है ? फिर संत बोंदरु बाबा का जीवन तो अपूर्व था। भाई रामसिंह की गाय को जीवित करने की घटना, उस समय के बड़वानी रियासत के । राजा श्री मोहनसिंह के कानों में भी उसकी आवाज पहुँची। महाराज ने सोचा-हो सकता है, कोई संत हो या यह भी तो हो सकता है कि कोई जादूगर हो ? और मेरे राज्य के भोले-भाले लोगों को अपने जादू का कमाल दिखाकर ठगने का प्रयत्न करता हो ? उसको बुलाकर परिचय तो जानना ही पड़ेगा। दो सिपाहियों को भाई रामसिंह के घर संत बोंदरु बाबा को बुलाने भेज दिया। 

जिस समय सिपाही रामसिंह भाई के घर पहुँचे, संत बोंदरु वहाँ से जाने की तैयारी में ही थे। जैसे ही सिपाहियों ने राजा मोहनसिंह का आदेश सुनाया! संत बोंदर उनके साथ राजा के दरबार में उपस्थित हो गये। राजा ने पुछा-क्या, तुम्हारा ही नाम बोंदरु हैं ? संत-जी महाराज, मेरा ही नाम बोंदर है। राजा-क्या तुम जादूगर हो ? जो रामसिंह की मृत गाय को जीवित कर दिया? संत-नहीं महाराज । इसमें मेरा तो कुछ भी नहीं है, यह तो ईश्वर की माया है और उसी ने मृत गाय के प्राण लौटाये हैं। हम मनुष्यों में इतनी शक्ति नहीं होती कि मृत देह में उसकी आत्मा को वापस लौटा सकें। राजा-तो क्या तुम भगवान के भक्त हो? संत-भक्त तो नहीं हूँ, परन्तु प्रयत्न कर रहा हूँ कि वह परमपिता अपनी भक्ति का प्रकाश मुझमें प्रकाशित कर दे। राजा-तुम अपनी बातों के जाल में मुझे मत उलझाओं। अगर तुम सचमुच भगवान के भक्त हो, तो हमारे यहाँ एक सुखा कुँवा है, जो पच्चीस-तीस हाथ गहरा खोदा हुआ है, पर उसमें पानी नहीं निकला। उसमें तुम पानी निकाल दो, तो समझेंगे कि तुम सच्चे ईश्वर भक्त हो वरना तो तुम जानते हो ? मेरे राज्य की भोली-भाली जनता को बरगलाने और ठगने का दण्ड भुगतना पड़ेगा। संत-चलो, देखते है । ईश्वर की जैसी इच्छा होगी वैसा ही होगा। उनकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता। 

इतना कहकर संत चलने को उद्यत हुए तब राजा तो सिंहासन से खड़े नहीं हुए परन्तु कुछ सिपाही और राज दरबारी संत के साथ सुखे कुँवे तक आये और संत को वह कुँवा दिखाया । संत ने कुँवे में झाँकर देखा, कुँवा खुब गहरा और एकदम सुखा था। संत ने अपना झोला और जल का लोटा कुँवे के पास नीचे रखा। कुँवे के दोनो हाथ जोड़े तथा पाँच परिक्रमा की। अपना जल का लोटा उठाया। माँ नर्मदा को याद किया। कहाँ माँ नर्मद, तेरे इस कार प्राणियों की प्यास बुझेगी, माँ! आपके दर्शन मात्र से प्राणियों के पाप और ताप दोनो नष्ट हो। जाते है, हे माँ आप तो अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली हो, आज इस भक्त की भी लाज रखलो । माँ ! अपनी एक धारा सिर्फ एक धारा इस कुँवे में डाल दो। आपका बड़ा ही उपकार होगा और प्राणी मात्र आपका जल पीकर अपनी प्यास बुझायेंगे....। कहते-कहते संत ने अपने हाथ के लोटे में से पानी की धारा कुँवे में डाली, तो उपस्थित जनता, सिपाही और राजदरबारी सब देखते ही रह गये कि कुँवे में नीचे से पानी ऊपर चढनाशा हो गया और देखते ही देखते ऊपर तक कुँवा भर गया। जब कुँवा भर गया तो तब तक कुँवे के पास का विशाल मैदान भी लोगों के हुजुम से खचाखच भर गया तथा बाबा बोंदरु की जय जय कारके नारों से आसमान भी गुंजने लगा। - यह कुँवा आज भी बड़वानी में विद्यमान है। सभी उसे झाकरिया कुँवा के नाम से जानते हैं। 

* जय संत बोंदरु बाबा * 


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